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सोमवार, जुलाई 12, 2010

फुरसत में बनाया होगा


ये चेहरा खुदा ने फुरसत में बनाया होगा
फिर देख इसे खुद पे बहुत इतराया होगा 

जुल्फों की उधारी काली घटा से ली होगी 
आरिज के लिए महताब को मनाया होगा 

होठों पे तबस्सुम गुलाब से रख दी होगी 
आँखों की शक्ल में सागर सजाया होगा 

इस जबीं पे फरिश्तों ने सजदे किये होंगे 
काफिरों ने भी दुआ में हाथ उठाया होगा 

और किसी दम जो तुम चले गए होगे यूँ 
आईना भी देख कर तुम्हे शरमाया होगा 

उदास तीरगी भी कहीं छुप ही गयी होगी 
रुख से नकाब यूँ तुमने जब हटाया होगा 

क्या कहे अब अल्फाज़ "राज" के तुमको 
इन्हें ग़ज़ल कहने में पसीना आया होगा 
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