मीठा मीठा इक दर्द उठाया है तन्हाई ने
जिक्र जो उसका छेड़ दिया है पुरवाई ने
हँसता है गर दरिया, खुश ना जानो तुम
जाने कितना दर्द छुपा रखा है गहराई ने
हिचकी भी मुझको अब ना आती उतनी
याद भी कम करवा दी शायद मंहगाई ने
ये चाँद बहुत कम आँगन में आता है मेरे
जाने क्या-२ सिखलाया है शब् हरजाई ने
हमको लफ़्ज़ों की किमियागीरी नहीं पता
ग़ज़ल बना दी इश्क, मुहब्बत, रुसवाई ने