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रविवार, जुलाई 18, 2010

उनकी यादों को तो बेधड़क आना है


उनकी यादों को तो बेधड़क आना है 
कमबख्त दिल अपना भी दीवाना है 

उसे बदली की ओट से देख लेता है 
ये मुआ चाँद भी बहुत ही सयाना है 

आफताब को कोई नहीं पूछता अब 
बस इन जुगनुओं का ही जमाना है 

जंगलों की आग शहरों में आ गयी है 
जीने के लिए जो औरों को दबाना है 

ये मंदिर, मस्जिद, गिरजे, गुरद्वारे 
सब में रिश्वत का चलन पुराना है 

और जो वाईज बने फिरते हैं यहाँ 
शाम उनके हाथों में भी पैमाना है 

साहिल से क्या दुश्मनी कर लूँ मैं 
रेत पे ही जो घर अपना बनाना है 

इन सितारों को राजदार ना रखो 
इन्हें शाम को आना सुबह जाना है 

कौमी जूनून में दोनों जले बैठे हैं 
उधर है ख़ामोशी, इधर वीराना है

शाम ढले तो घर चले जाना 'राज' 
माँ का आँचल सुकूँ का ठिकाना है 

मेरी आरजू खुदा जैसी है


बद्दुआओं में दुआ जैसी है 
मेरी आरजू खुदा जैसी है 

धुंधली-२ शब् सी मिलती 
कभी बादे---सबा जैसी है 

मेरे दिल का साज भी है 
नगमो की सदा जैसी है 

गुलों का चटख रंग भी है 
कलियों की हया जैसी है 

बदली में चाँद सी लगे है 
तारों की कहकशां जैसी है 

हैं उसके नाम की कसमे 
किसी अहदे-वफ़ा जैसी है 

सोचता हूँ के बार बार करूँ 
खुबसूरत सी खता जैसी है 

बद्दुआओं में दुआ जैसी है 
मेरी आरजू खुदा जैसी है

चाँद ढल रहा है थोडा निखार दे दूँ


अपनी तन्हाई उसको उधार दे दूँ 
चाँद ढल रहा है थोडा निखार दे दूँ 

रुतें बहुत तप के गयीं है तेरे बाद 
क्यों ना इन्हें यादों की बहार दे दूँ 

हद तलक हैं इस दिल की तश्नगी 
चलो मयकदे चलूं इसे करार दे दूँ

उसकी याद आये आंसुओं के साथ  
ये लम्हा आँखों को खुशगवार दे दूँ 

मेरे बगैर कहीं उसका दिल ना लगे 
दुआ अपने दिल से ये बेशुमार दे दूँ 

वो आईना भी जो देखे तो मुझे पाए 
उसके चेहरे पे नक्श यादगार दे दूँ 

शम्म सी हो जाए सुलगती रहा करे 
मौसम-ए-शबनम का इंतजार दे दूँ