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शुक्रवार, सितंबर 02, 2011

दीवाने को तो सब अच्छा लगे है



हर इक चेहरे में तेरा चेहरा लगे है 
हिज्र में मुझको सब सेहरा लगे है 

मेरी हर सदा नाकाम लौट आयी
मुझे तो ये खुदा भी बहरा लगे है 

जाग उठा हूँ अचानक सोते-सोते 
शायद तेरी याद का पहरा लगे है 

खारों से रफाकात हुयी है जब से 
इन फूलों का ज़ख्म गहरा लगे है 

इस किनारे से उस किनारे तलक 
ये दरिया भी बहुत प्यासा लगे है 

उसकी हंसी पे मत जाइए "राज़"
दीवाने को तो सब अच्छा लगे है 

11 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर भी की गई है!
    यदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।

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  2. वाह बहुत ही खू्बसूरत अन्दाज़ है।

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  3. बहुत खूब... उम्दा अशआर... खुबसूरत ग़ज़ल...
    सादर...

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  4. बहुत ही खूबसूरत रचना |

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  6. अच्छा लगा ये अंदाज़ भी. खूबसूरत गज़ल

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  7. आप सभी का शुक्रिया किन शब्दों में अदा करूँ, नहीं जानता, आप सभी ने अपना कीमती वक़्त दिया...
    सरकारी मशरूफियत इतनी ज्यादा हो गयी है के ज्यादा वक़्त नहीं निकाल पा रहा हूँ यहाँ के लिए,
    पर उम्मीद करूँगा की आपका प्यार हमेशा ऐसे ही बना रहे... शुक्रिया

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