बड़ी हसरत रही है खुद को आजमाने की
मोहब्बत करके, इक और चोट खाने की
गर उन आँखों से जो सागर पिए बैठा हो
तशनगी फिर कहाँ मिटती है दीवाने की
होश में आये जब और दर्द बढ़ गया थोडा
याद आई हमे उस जाम-ओ-मयखाने की
कहर-ए-बर्क जब हुआ आशियाने पे मेरे
नजर भर आयी अदा तेरी मुस्कराने की
शब् से सहर, सहर से शब्, हो जाए जब
खबर कर देना, उनके आने की जाने की
शमा जल-२ के खुद को रंगीं क्या कर दे
तवज्जो फिर नहीं होती इस परवाने की
शिकवे गिले हैं उनसे फिर भी नहीं कहते
खामोश करती है अदा उनके शरमाने की