इक ऐसी भी शाम आई है
के वो तो है पर तन्हाई है
मौसम--मंजर सूने-सूने
ना साया है ना परछाई है
देगा कौन गवाही मेरी
जिसको देखो हरजाई है
उनके कूचे छोड़ दिए हैं
डर है उसकी रुसवाई है
जब गुजरी बेख़ौफ़ हवा
अश्कों से शमा जलाई है
वहम है मेरा या सच है
ये किसने सदा लगाई है
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