याद करता भी जाएगा भुलाता भी जायेगा
जख्मो पे मेरे यूँ नमक लगाता भी जायेगा
साहिल-ओ-मौज का तजुर्बा रखता है खुद में
पास आता भी जायेगा दूर जाता भी जायेगा
अब्र जब भी फलक के रूबरू बैठा करेगा यूँ
हर सहरा को गुलिस्ताँ बनाता भी जायेगा
अपने दर्द की लज्जत खुद ही खुद में रखेगा
जब भी मिलेगा ज़रा मुस्कुराता भी जायेगा
मेरी आदतें उसने यूँ तो बिगाड़ रखी हैं बहुत
मुझसे रूठेगा मगर मुझे मनाता भी जायेगा
मेरी खताओं का मुझपे इल्जाम लगा देगा
और हर सजाओं से फिर बचाता भी जायेगा
बहुत सुंदर और उत्तम भाव लिए हुए.... खूबसूरत रचना......
जवाब देंहटाएंshukriya sanjay bhai.........hausla dete rahiye
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