ना शिकवे रख ना गिले रख
दरमियाँ कुछ ना फासले रख
तन्हा जिन्दगी नहीं कटती है
मिलने जुलने के सिलसिले रख
देख दस्तक बहारों की हुई है
खिड़की-दरवाजे ज़रा खुले रख
तीरगी फिर तीरगी नहीं होगी
चराग घर में दो चार जले रख
आँखों से ही सही, जवाब दे ना
होठों को गर चाहे तो सिले रख
हिज्र में काम बहुत आयेंगे "राज"
साथ उनकी यादों के काफिले रख