लोकप्रिय पोस्ट

सोमवार, जनवरी 17, 2011

ख्वाब में ही सही आके तो मिला कर


कभी मुझ पर भी तू इतनी दुआ कर 
ख्वाब में ही सही आके तो मिला कर 

महर-ओ-माह की नहीं दरकार मुझे 
मेरे घर में इक चराग बस अता कर 

थक चुकी है ये शब् तीरगी से बहुत
नसीमे-सहर दे खूबसुरत फ़ज़ा कर 

ना ले थाम हाथों में तू हाथ मेरा पर  
साथ कुछ दूर चलने से ना मना कर 

आजार-ए-इश्क का भी मज़ा ले यहाँ 
अरे इक बार ही सही ये भी खता कर 

सुकूँ उसके ही दर पर ही तुझे आएगा 
चल मस्जिद चल इबादत-ए-खुदा कर 

ज़फ़ा करे वो तो हंस के टाल दे "राज़"
कुछ और ना उनसे वफ़ा के सिवा कर