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बुधवार, जून 02, 2010

खो गया है मेरी दीवारों दर का पता




खो गया है मेरी दीवारों दर का पता 
नहीं मिलता मुझे मेरे घर का पता 

यूँ चल तो रहा हूँ दुनिया की भीड़ में 
ना मंजिल का पता ना सफ़र का पता 

जो मिटा दे यहाँ शब् की तासीर को 
ले के आये कोई ऐसी सहर का पता 

ज़माने को क्या फ़िक्र तन्हाई की मेरी 
ढूंढे कौन दश्तो में तन्हा शजर का पता 

यूँ देखकर के आइना मुझे हैंरान क्यूँ है 
क्या मुझमे है किसी वीराँ शहर का पता 

अपने माजी का उसपे क्या इल्जाम दूँ 
रखता हूँ गुमनाम दर्दे-जिगर का पता 

ऐसे आने से तो बहतर था न आना तेरा




कुर्ब के दो लम्हे देके फिर वो जाना तेरा
ऐसे आने से तो बहतर था न आना तेरा

बड़ा परीशां करता है ये मंजर आज हमे 
घटाओं के साथ जुल्फों का लहराना तेरा 

हासिल मुझे वफ़ा का मेरी शायद ये रहा 
मेरे अश्क बहे और हुआ मुस्कराना तेरा 

हैरत में कर गयी रफाकत की ये भी अदा 
बज्म में साथ रकीब के मुझे बिठाना तेरा 

मेरी तश्नगी की कभी कदर ना हुई तुझसे 
गैरों की लिए रहे जाम-ओ-मयखाना तेरा 

मेरी किस्मत में लिख दी है तन्हाई कैसी 
हर सांस में चलता है अब अफसाना तेरा 

तेरी फितरत है जफा तो जफा कर ले तू 
'राज' तो रहेगा बस उम्र भर दीवाना तेरा