लोकप्रिय पोस्ट

शनिवार, मई 14, 2011

अब जिंदगी इम्तेहान जैसी है



मुझे लगती बियाबान जैसी है 
अब जिंदगी इम्तेहान जैसी है 

ज़मीं की खाक है औकात मेरी  
वो लड़की तो आसमान जैसी है 

फितरते-दिल को क्या कहिये 
किसी परिंदे की उड़ान जैसी है 

हर रोज दर्द ले के बढ़ जाती है  
अब ये सांस भी लगान जैसी है 

तुझे सोचता हूँ तो टूट जाता हूँ 
तेरी याद तो बस थकान जैसी है 

बिना सिक्कों से ये चलती नहीं 
के रिश्तेदारी भी दुकान जैसी है 

मौत तो मुक्क़मल ही हैं यहाँ पे 
अपनी रूह ही बे-ईमान जैसी है 

माँ की दुआ ही परदेस में यारों 
सुकून-ओ- इत्मिनान जैसी है 

'राज़' कहें क्या 'आरज़ू' अपनी 
यहाँ पे वही तो पहचान जैसी है