मुझे लगती बियाबान जैसी है
अब जिंदगी इम्तेहान जैसी है
ज़मीं की खाक है औकात मेरी
वो लड़की तो आसमान जैसी है
फितरते-दिल को क्या कहिये
किसी परिंदे की उड़ान जैसी है
हर रोज दर्द ले के बढ़ जाती है
अब ये सांस भी लगान जैसी है
तुझे सोचता हूँ तो टूट जाता हूँ
तेरी याद तो बस थकान जैसी है
बिना सिक्कों से ये चलती नहीं
के रिश्तेदारी भी दुकान जैसी है
मौत तो मुक्क़मल ही हैं यहाँ पे
अपनी रूह ही बे-ईमान जैसी है
माँ की दुआ ही परदेस में यारों
सुकून-ओ- इत्मिनान जैसी है
'राज़' कहें क्या 'आरज़ू' अपनी
यहाँ पे वही तो पहचान जैसी है