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सोमवार, मार्च 22, 2010

अब ना गम रहा ना कोई मलाल रहा


अब ना गम रहा ना कोई मलाल रहा 
के जब से दिल में ना तेरा ख्याल रहा 

हसरतें जिंदगी की सब मिट गयीं यूँ 
ना हंसी रही ना आँखों में शलाल रहा 

तेरे हुस्न के मारे अब जियें कैसे बता 
संगदिल से बस यही एक सवाल रहा 

अपने माजी से ही तकरार हुई अपनी 
ये आलम-ओ-मंजर सालो-साल रहा 

खुद ही खुद की तबाही का सबब हुए 
किसी से ना कभी हमको बवाल रहा 

रो-रो के हँसे, हंस-हंस के रोया किये 
वहशत में उसकी, ऐसा भी हाल रहा

दर्द ही जिंदगी का इक हमसफ़र रहा


वो मेरे जख्मों से जबसे बेखबर रहा 
दर्द ही जिंदगी का इक हमसफ़र रहा 

खामोश रह गए तो गुनहगार हो गए 
बेवफाई का इल्जाम मेरे ही सर रहा 

नहीं बहला था दिल शाम के आने से 
मन्जर तन्हाई का फिर रात भर रहा 

बात कर लेते तो शायद सुलझ जाती 
रुसवा होने का मगर उनको डर रहा 

यूँ तो आसमाँ में बर्क बहुत चमकी 
निशाना सिर्फ एक मेरा ही घर रहा