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रविवार, मई 10, 2009

तेरा इन्तजार शब् भर रहा



तेरा इन्तजार शब् भर रहा
तू ना जाने कहाँ उलझा रहा

मैं उसी मोड़ पे बैठी रही
तेरी राहों से जो मुड़ता रहा

यूँ तो मैंने खुद को संभाला बहुत
पर आँचल हवा से उड़ता रहा

सहर की जब से आहट हुई
अश्कों से नाता मेरा जुड़ता रहा