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शुक्रवार, दिसंबर 03, 2010

जिन्दगी.....



जाने कैसी है ये बेरंग जिन्दगी 
चाहता हूँ बस तुम्हारे संग जिन्दगी 


ना सलीका है कोई ना तरीका है 
कट रही है यूँ ही बेढंग जिन्दगी  


मैं इससे और ये है मुझसे उलझी हुई 
ख्यालों से मेरे हुई अब तंग जिन्दगी 


किसी मोड़ पर जीत तो हार है कभी 
उम्र भर को रहेगी क्या जंग जिन्दगी 


ना जाने कब कहाँ ये डोर टूट जाए 
फलक पे उडती जैसे कोई पतंग जिन्दगी 


कोई ख्वाहिश न कर अब इससे 'राज' तू 
काट ले बस यूँ ही होके मलंग जिन्दगी