कभी ख्वाबों तो कभी ख्यालों में कटी रात
उसने जो बख्शे थे उन शलालों में कटी रात
हवा की आहट से भी उसका अहसास हुआ
दिल में चले ऐसे कुछ बवालों में कटी रात
"एक मेरा ही दिल था क्या टूटने के लिए"
दर्द से काबिज इन्ही सवालों में कटी रात
सहर के इन्तजार में थक कर वहशी हुए
हिज्र के लम्हे की तरह सालों में कटी रात
काश अपनी वफ़ा हम उसपे जाहिर करते
पर अब क्या हो, बस मलालों में कटी रात
सुकूँ के दो लम्हे "राज" यूँ हुए थे नसीब
जब मयखाने के रंगीं प्यालों में कटी रात