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मंगलवार, जून 14, 2011

कोई हौसला ऐ हवा ना कर....



कहता हूँ कोई हौसला ऐ हवा ना कर 
मेरे चराग को बे-सबब छुआ ना कर 

सुलग उठते हैं उदासी से सफहे कई 
आंसुओं से ग़ज़ल को लिखा ना कर 

गर तेरे बस में नहीं है दुआ ना सही 
तू मगर किसी को भी बद्दुआ ना कर 

उसकी फितरत है ज़फायें तो रहने दे  
कौन कहता है तुझसे तू वफ़ा ना कर 

ये सख्त लोग हैं कैफियत ना समझे  
होकर यूँ मासूम जहाँ में रहा ना कर 

नज़र लग जाए ना कहीं डर है बहुत 
आईने में खुद को इतना पढ़ा ना कर 

सुना माह की नीयत भी अच्छी नहीं 
तो छत पे तन्हा उससे मिला ना कर 

वक़्त से पहले कुछ मिलता ना कभी    
किस्मत से बे-वजह यूँ गिला ना कर 

खुदा तेरी भी सुनेगा इक दिन "राज़" 
लिए ''आरज़ू'' अपनी यूँ फिर ना कर