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रविवार, अप्रैल 28, 2013

हम नासमझों के हवाले जायेंगे




अँधेरे जायेंगे, उजाले जायेंगे
इक रोज सब निकाले जायेंगे

सच का जनाज़ा निकलेगा औ'
झूठ के परचम संभाले जायेंगे

जब ये जिस्म बूढा हो जाएगा
तो फिर कैसे पेट पाले जायेंगे

दिन में बुराई शराब की करेंगे
रात में गटके वो प्याले जायेंगे

यहाँ भाईचारे की बात करेंगे वो
उधर हमारे सिर उछाले जायेंगे

दिल्ली में सहमी हुई आबरुयें
कौन जाने कब उठा ले जायेंगे

समझदारों के पल्ले ना पड़े हम
हम नासमझों के हवाले जायेंगे

लफ़्ज़ों की भूख जब बढ़ेगी "राज़"
तो कुछ अशआर उबाले जायेंगे