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मंगलवार, फ़रवरी 23, 2010

तेरे बगैर भी जिंदगी चलने लगी है


रात आ गयी ये शाम ढलने लगी है 
तेरे बगैर भी जिंदगी चलने लगी है 

जब से अश्के--बज्म सजाई है मैंने 
तन्हाई भी घर से निकलने लगी है 

तेरी यादों के साए ही काफी हैं यहाँ 
उनसे ही शाम अब बहलने लगी है 

लौट के ना देखना अब मेरी जानिब  
तबियत जरा जरा संभलने लगी है 

वो और वक़्त था के तेरी दरकार थी 
मेरी आदत भी अब बदलने लगी है 

ऐसी तीरगी नहीं जो मिट ना सके 
आँख भी चराग सी जलने लगी है