आ जाओ कभी तो दिल को चैन-ओ-करार हो जाए
आँखों का मुद्दत से चल रहा ख़त्म इंतज़ार हो जाए
भटक रहा हूँ जाने किसकी तलाश में दश्त-ब-दश्त
तुमसे मिल लूँ तो शायद सेहरा में भी बहार हो जाए
कितने लम्हे काटे हैं मैंने तन्हाई के साथ अपनी
फिरता रहता हूँ कमबख्त रुसवाई के साथ अपनी
तुम छू लो तो शायद ये मंजर भी गुलज़ार हो जाए
आ जाओ कभी तो दिल को चैन-ओ-करार हो जाए
ये सावन की बरखा भी अब मुझको रिझाती नहीं है
ये बादे--सबा भी दिल को अब मेरे बहलाती नहीं है
तुम कह दो ना इससे ज़रा,मेरी हम-ख्वार हो जाए
आ जाओ कभी तो दिल को चैन-ओ-करार हो जाए
मेरे अल्फाज़ ही दिल के जज्ब बयां करेंगे सब तुमसे
ना कोई चाहत इसके सिवा हम भी करेंगे अब तुमसे
तुम्हारे हाथों को चूम लें और खुद पे ऐतबार हो जाए
आ जाओ कभी तो दिल को चैन-ओ-करार हो जाए