आ जाओ कभी तो दिल को चैन-ओ-करार हो जाए
आँखों का मुद्दत से चल रहा ख़त्म इंतज़ार हो जाए
भटक रहा हूँ जाने किसकी तलाश में दश्त-ब-दश्त
तुमसे मिल लूँ तो शायद सेहरा में भी बहार हो जाए
कितने लम्हे काटे हैं मैंने तन्हाई के साथ अपनी
फिरता रहता हूँ कमबख्त रुसवाई के साथ अपनी
तुम छू लो तो शायद ये मंजर भी गुलज़ार हो जाए
आ जाओ कभी तो दिल को चैन-ओ-करार हो जाए
ये सावन की बरखा भी अब मुझको रिझाती नहीं है
ये बादे--सबा भी दिल को अब मेरे बहलाती नहीं है
तुम कह दो ना इससे ज़रा,मेरी हम-ख्वार हो जाए
आ जाओ कभी तो दिल को चैन-ओ-करार हो जाए
मेरे अल्फाज़ ही दिल के जज्ब बयां करेंगे सब तुमसे
ना कोई चाहत इसके सिवा हम भी करेंगे अब तुमसे
तुम्हारे हाथों को चूम लें और खुद पे ऐतबार हो जाए
आ जाओ कभी तो दिल को चैन-ओ-करार हो जाए
आ जाओ कभी तो दिल को चैन-ओ-करार हो जाय.
जवाब देंहटाएंयहाँ "चैन-ओ-करार" का इस्तेमाल सुंदर तरीके से किया है.
क्या आशिकाना अंदाज़ है ........ बहुत खूब .......
जवाब देंहटाएं"मेरे अल्फ़ाज़ " तुम्हारे हथों को चूम लें और ख़ुद पे ऐतबार हो जाये। बहुत ही बेहतरिन पक्ति। मुबारकबाद।
जवाब देंहटाएंदीपक साहब...
जवाब देंहटाएंसंजय भाई....
डोक्टर साहब.....
आप सभी का तहेदिल से अहसान मंद हूँ..
जो आपने शिरकत की मेरी महफ़िल में..
उम्मीद करूँगा की ये हौसला अफजाई यूँ ही होती रहे..
शक्रिया....खुश रहें आप सब
बहुत सुन्दरता से लिखा है ..
जवाब देंहटाएंkalamdaan.blogspot.in
seriously aapki shaayari ka fan ho gya hu... bahut umdaa likh rhe haen aap, likhte rhiye..
जवाब देंहटाएंnice
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