जब से ख्वाहिश-ओ-अरमान जाया किये
वो हमको और हम उनको भुलाया किये
कर गए थे वादा शाम ढले आने का मगर
सहर तक वो बस आया किये आया किये
देकर जख्म दिल को भी खुश ना रह सके
हम होकर बिस्मिल भी, मुस्कराया किये
यादों का समंदर शब् भर मचला जेहन में
चरागे-अश्क, जलाया किये, बुझाया किये
जाने किस उम्मीद में सोये नहीं हम कभी
यही इक था सितम खुद पे बस ढाया किये
उनकी खातिर बहारों का पैगाम लिख दिया
घर अपना 'राज' खारों से ही सजाया किये
बहुत ही सुन्दर शब्दों....बेहतरीन भाव....खूबसूरत कविता...
जवाब देंहटाएंशुक्रिया भाई साब....
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