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बुधवार, सितंबर 23, 2009

तुम्हे छूकर गुलाब कर दूंगा


तुम्हे छूकर गुलाब कर दूंगा
पूरा हर एक ख्वाब कर दूंगा

तुम हिज्र में शिकवे लिख लेना
मैं वस्ल में सब हिसाब कर दूंगा

तुमको शौक है ना माह होने का
अमावस में ये भी खिताब कर दूंगा

जब भी ग़ज़ल में तारे लिखूंगा
तुमको उसमे माहताब कर दूंगा

नजर कहीं न मेरी ही लग जाए
अपने आँखों को नकाब कर दूंगा

खुशगवार लम्हों को तुम पढ़ा करना
जीस्त को मुक़म्मल किताब कर दूंगा

अपने जख्मो की यूँ दास्ताँ कह देना
मैं मरहम कोई लाजवाब कर दूंगा

गुरुवार, सितंबर 17, 2009

जब भी ख़त में मौसम लिखना



जब भी ख़त में मौसम लिखना
मुझको उसमे सावन लिखना

खुद को कुरबत सब दे देना
मुझे हिज्र का आलम लिखना

इश्क में तेरे बन बैठे पागल
बात यही तुम हरदम लिखना

बादे सबा जब चले शहर से
आँखे अपनी पुरनम लिखना

सबसे मिलना हंसते रहना
मेरे जानिब सब गम लिखना

लौटूंगा मैं इक रोज देखना
इन्तजार बस कायम लिखना

बुधवार, सितंबर 09, 2009

इक रोज उसे यूँ ही, सीने से लगा लूँ मैं




सोचा करता हूँ ये तोहमत भी उठा लूँ मैं
इक रोज उसे यूँ ही, सीने से लगा लूँ मैं

हलकी हलकी बूंदें जो फलक पे बरसी हों
उसको मिलने फिर, इक शाम बुला लूँ मैं

आलम पे अब्रों का, जब साया बिखरा हो
मौसम की बाहों से इक लम्हा चुरा लूँ मैं

नींद मुझे जब भी उसकी बांहों में आये
ख्वाब सुनहरे सब पलकों में सजा लूँ मैं

हवा के झोंके से जो उसकी खुशबू आये
गुलशन के गुल को हमराज बना लूँ मैं

'राज' जो दिल में हैं तुम सुनने ना आओ
गज़लों में ही दिल की हर बात बता लूँ मैं

बुधवार, सितंबर 02, 2009

देता हूँ हर घड़ी अब मैं दुआ उसको



देता हूँ हर घड़ी अब मैं दुआ उसको
उसने ना करी पर मिले वफ़ा उसको

तारीक-ऐ-शब् हासिल हो मुझी को
नसीमे सहर पर बख्शे खुदा उसको

कदर करो गर कभी रहे रूबरू तुमसे
बिछड़ेगा तो रहोगे देते सदा उसको

अहदें किसी से तुम ना किया करना
जब तक के यूँ पाओ ना निभा उसको

किसी से इश्क हो तो चुप नहीं रहना
थाम के कलाई बस देना बता उसको

लबों पे कभी कोई मुस्कान खिला दे
उसे दुआ करना कहना भला उसको

मौसम जो तुमसे कुछ यूँ रूठा बैठा है
सब्ज रुतो में 'राज' लेना बुला उसको