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रविवार, फ़रवरी 05, 2012

जब किसी की याद ले के आती है हवा



फिर कुछ ज्यादा ही बल खाती है हवा 
जब किसी की याद ले के आती है हवा  

तूफां सी चले तो कहीं खामोश ही पले
रंग कितने खुद में ही दिखाती है हवा 

ऐसे ही नहीं वो सभी उड़ते हैं फलक पे 
परिंदों के हौसलों को भी बढाती है हवा 

जिद पे आ जाए तो सुने ना किसी की 
दस्त के दस्त खाक में मिटाती है हवा 

जब भी उदासियों के मंज़र सुलगते हैं  
देके प्यार से थपकियाँ सुलाती है हवा 

लौटती है जब कभी यूँ उसके शहर से 
फ़साने फिर सब उसके सुनाती है हवा 

लफ्ज़ मौसमों से उधार मिलते हैं जब 
खूबसूरत सी ग़ज़ल कोई गाती है हवा 

शुक्रवार, फ़रवरी 03, 2012

पलक अश्कों की राह मुहाल किये बैठी है



पलक अश्कों की राह मुहाल किये बैठी है  
और मुई नींद रातों से बवाल किये बैठी है 

हमे हार के इश्क की बाज़ी जिंदा रहना है  
के मोहब्बत हमको मिसाल किये बैठी है 

पूछ पूछ कर थक गया पर ये कहती नहीं 
सहर क्यूँ हर जर्रे को शलाल किये बैठी है

सेहरा की तपती रेत से जाकर जरा पूछो 
हिज्रे-बहारा में वो क्या हाल किये बैठी है 

वो नहीं आती तो तुम ही क्यूँ नहीं जाते 
मेरी अना मुझसे ये सवाल किये बैठी है 

कुछ और ख्वाहिश मुझे करने नहीं देती 
तेरी आरज़ू भी क्या कमाल किये बैठी है

घडी इंतज़ार की ये कटती ही नहीं तन्हा 
देखो हर इक लम्हे को साल किये बैठी है 

हवा के झोंके तो आते हैं चले जाते हैं यहाँ 
क्यों इनके लिए रुत मलाल किये बैठी है 

भटक रहे हैं सारे लफ्ज़ उसकी ही याद में 
ग़ज़ल है के उसका ही ख्याल किये बैठी है 

बुधवार, फ़रवरी 01, 2012

उसकी याद का जब कभी सैलाब चले है




उसकी याद का जब कभी सैलाब चले है 
मेरी आँखों से बे-सबब फिर आब चले है 

ये दोस्त जान लेते हैं हर बात जेहन की
इन पे कब कहाँ हंसी का हिजाब चले है 

दिल अपना हार के हम सिकंदर हो गये
इश्क के खेल में उल्टा ही हिसाब चले है  

हौसलों के दम से ही वो यहाँ रौशन हुए 
जुगनुओ के साथ कब आफताब चले है 

लौटके वो आ रहा ये खबर जबसे मिली 
तबसे धड़कन दिल की ये बेताब चले है 

लफ़्ज़ों में हुई हो दिल की हाल-ए-बयानी  
तो ग़ज़ल में कहाँ बहर का आदाब चले है