फिर कुछ ज्यादा ही बल खाती है हवा
जब किसी की याद ले के आती है हवा
तूफां सी चले तो कहीं खामोश ही पले
रंग कितने खुद में ही दिखाती है हवा
ऐसे ही नहीं वो सभी उड़ते हैं फलक पे
परिंदों के हौसलों को भी बढाती है हवा
जिद पे आ जाए तो सुने ना किसी की
दस्त के दस्त खाक में मिटाती है हवा
जब भी उदासियों के मंज़र सुलगते हैं
देके प्यार से थपकियाँ सुलाती है हवा
लौटती है जब कभी यूँ उसके शहर से
फ़साने फिर सब उसके सुनाती है हवा
लफ्ज़ मौसमों से उधार मिलते हैं जब
खूबसूरत सी ग़ज़ल कोई गाती है हवा
वाह
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना है ..
शुक्रिया......रीना जी
जवाब देंहटाएंसुन्दर सृजन , सुन्दर अभिव्यक्ति.
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शुक्रिया भाई साब...
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