पलक अश्कों की राह मुहाल किये बैठी है
और मुई नींद रातों से बवाल किये बैठी है
हमे हार के इश्क की बाज़ी जिंदा रहना है
के मोहब्बत हमको मिसाल किये बैठी है
पूछ पूछ कर थक गया पर ये कहती नहीं
सहर क्यूँ हर जर्रे को शलाल किये बैठी है
सेहरा की तपती रेत से जाकर जरा पूछो
हिज्रे-बहारा में वो क्या हाल किये बैठी है
वो नहीं आती तो तुम ही क्यूँ नहीं जाते
मेरी अना मुझसे ये सवाल किये बैठी है
कुछ और ख्वाहिश मुझे करने नहीं देती
तेरी आरज़ू भी क्या कमाल किये बैठी है
घडी इंतज़ार की ये कटती ही नहीं तन्हा
देखो हर इक लम्हे को साल किये बैठी है
हवा के झोंके तो आते हैं चले जाते हैं यहाँ
क्यों इनके लिए रुत मलाल किये बैठी है
भटक रहे हैं सारे लफ्ज़ उसकी ही याद में
ग़ज़ल है के उसका ही ख्याल किये बैठी है
सुन्दर गज़ल्।
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना है .....
जवाब देंहटाएंbadhiyaa ghazal
जवाब देंहटाएंआप सभी का आभार...
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