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शुक्रवार, फ़रवरी 03, 2012

पलक अश्कों की राह मुहाल किये बैठी है



पलक अश्कों की राह मुहाल किये बैठी है  
और मुई नींद रातों से बवाल किये बैठी है 

हमे हार के इश्क की बाज़ी जिंदा रहना है  
के मोहब्बत हमको मिसाल किये बैठी है 

पूछ पूछ कर थक गया पर ये कहती नहीं 
सहर क्यूँ हर जर्रे को शलाल किये बैठी है

सेहरा की तपती रेत से जाकर जरा पूछो 
हिज्रे-बहारा में वो क्या हाल किये बैठी है 

वो नहीं आती तो तुम ही क्यूँ नहीं जाते 
मेरी अना मुझसे ये सवाल किये बैठी है 

कुछ और ख्वाहिश मुझे करने नहीं देती 
तेरी आरज़ू भी क्या कमाल किये बैठी है

घडी इंतज़ार की ये कटती ही नहीं तन्हा 
देखो हर इक लम्हे को साल किये बैठी है 

हवा के झोंके तो आते हैं चले जाते हैं यहाँ 
क्यों इनके लिए रुत मलाल किये बैठी है 

भटक रहे हैं सारे लफ्ज़ उसकी ही याद में 
ग़ज़ल है के उसका ही ख्याल किये बैठी है 

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