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शुक्रवार, जुलाई 31, 2009

अच्छा लगता है



तुमको यूँ ही सताना अच्छा लगता है
रूठ जाती हो मनाना अच्छा लगता है

एक तुमको ही तो मैं अपना कहता हूँ
वादा तुमसे निभाना अच्छा लगता है

कोई नहीं यहाँ, जो दिल के जज्बे सुने
हर बात तुम्हे बताना अच्छा लगता है

जब भूलने लगती है ये दुनिया यूँ मुझे
तुम्हारा वो याद आना अच्छा लगता है

सरे राह मिलती हैं जब नजरे नजर से
दांतों से पल्लू दबाना अच्छा लगता है

छेड़ देता है जब अब्र जुल्फों के तार को
करीने से जूड़ा सजाना अच्छा लगता है

पलकों की नम कोरें यूँ, अच्छी लगती हैं
बेसबब कभी मुस्कराना अच्छा लगता है

इन्तजार का लुत्फ़ यूँ ही ले लेता हूँ मैं
किया वादा तेरा भुलाना अच्छा लगता है

सुना जब भी बातें तेरे अपनों का होतीं है
जिक्र मेरा उनमे उठाना अच्छा लगता है

चैन से सोने की बात तो करते हैं "राज"
पर ख्वाब में तेरा आना अच्छा लगता है

बुधवार, जुलाई 29, 2009

मैं और मेरा तन्हा चाँद



रात रात भर जगते दोनों, मैं और मेरा तन्हा चाँद
बेचैन बहुत हैं लगते दोनों, मैं और मेरा तन्हा चाँद

शब् से एक गुजारिश करते के, तू यूँ ही ना कट जाना
सहर के होने से डरते दोनों, मैं और मेरा तन्हा चाँद

मेरे दिल का आलम वो जाने, पीर मैं उसकी जाने हूँ
खामोशी में बातें करते दोनों, मैं और मेरा तन्हा चाँद

शाम ढले वो आ जाता है, बाम पे मुझसे मिलने को
एक दूजे पर हैं मरते दोनों, मैं और मेरा तन्हा चाँद

उसके संग सितारे हैं और, मेरे संग में रंगीं नजारे हैं
पर तन्हाई को सहते दोनों, मैं और मेरा तन्हा चाँद

सोमवार, जुलाई 27, 2009

जिधर देखते हैं बस तुझे ही उधर देखतें हैं



तेरे इश्क के बिस्मिल अब किधर देखते हैं
जिधर देखते हैं बस तुझे ही उधर देखतें हैं

ऐब तेरे हुस्न में अब एक नहीं मिलता हमे
जब भी देखतें हैं हम तो बस हुनर देखतें हैं

छलकता है जब अर्क जबीं से आरिज पे तेरे
हम उस दम आलम-ऐ-रुख पे गुहर देखतें हैं

अब तो मयखानों में दिल लगा नहीं करता
तेरे मयकश लबों से अपनी गुजर देखतें हैं

उनके पास भी इलाज नहीं दिल-ऐ-बीमार का
चारागर जब भी मेरा ये एक जिगर देखते हैं

अपने घर की छत पे आते तो हैं माहे ईद देखने
चाँद रहता है उधर मगर हम तेरे इधर देखतें हैं

वो दिन हमे ईद का दिन लगता है यूँ ही कभी
जिस रोज तुमसे मिलती अपनी नजर देखतें हैं

इंतजार की हद, क्या कहे "राज" अब तुमसे
के शाम से ही उठ उठ के बस सहर देखतें हैं

बुधवार, जुलाई 22, 2009

खुद को कुछ ऐसे भी आजमाता रहा


मैं रेत पर यूँ ही,एक घर बनाता रहा
खुद को कुछ ऐसे भी आजमाता रहा

कागजी फूलों से खुशबु नहीं आती है
जान के भी उन्हें मेज पे सजाता रहा

लौट आये वो शायद दुआ सुनकर ही
होके काफिर भी, मैं हाथ उठाता रहा

खुदा हो जाने का यकीन ना होने पाए
करके गुनाह ये वहम भी मिटाता रहा

दर्द जब अपनी हद पे पहुँच गया मेरा
रात भर आँखों से शबनम बहाता रहा

हवा की आहटें, जब पायलों सी लगीं
बेसबब दरवाजे तक आता जाता रहा

शनिवार, जुलाई 18, 2009

ये कारी-कारी कजरारी आँखें




ये कारी-कारी कजरारी आँखें
लगती हैं, प्यारी प्यारी आँखें
सुरमे से हैं, कुछ यूँ सजी हुई
जग से जैसे, मतवारी आँखें

ये कारी-कारी कजरारी आँखें
लगती हैं, प्यारी प्यारी आँखें

इनका झुकना, इनका उठना
बंद कली का हो जैसे खिलना
नजर डाल कर जब भौंरे देखें
बस शर्म से मारी मारी आँखें

ये कारी-कारी कजरारी आँखें
लगती हैं, प्यारी प्यारी आँखें

ये चेहरे की भाषा, पढ़ लेती हैं
कुछ नए स्वप्न यूँ गढ़ लेती हैं
एक झलक गर देख लो इनको
होंगी तुम पर वारी वारी आँखें

ये कारी-कारी कजरारी आँखें
लगती हैं, प्यारी प्यारी आँखें

खुशियों में खुश मिल जाती हैं
हो गम तो कुछ खिल जाती हैं
पर किसी से कुछ ना कहती हैं
होती अजब सी हैं बेचारी आँखें

ये कारी-कारी कजरारी आँखें
लगती हैं, प्यारी प्यारी आँखें

सब राजों को अयाँ ये कर देंगीं
सब बातों को बयाँ ये कर देंगीं
मेरा दिल कोई क्या समझेगा
समझेंगी सिर्फ तुम्हारी आँखें

ये कारी-कारी कजरारी आँखें
लगती हैं, प्यारी प्यारी आँखें

बुधवार, जुलाई 15, 2009

कभी तुम भी अपना वादा निभाया करो




कभी तुम भी अपना वादा निभाया करो
मेरे याद करने से पहले याद आया करो

आँखें रात भर रास्ता तुम्हारा तकती हैं
किसी रोज ख्वाब में आके चौंकाया करो

बद्दुआ बेशक मुझे तुम यूँ ही करते रहना
इसी बहाने नाम मेरा लबों पे लाया करो

मुझको अब जख्म नयी बात नहीं लगते
वफ़ा की जो हो सजा आके सुनाया करो

बाम पे आता हूँ मैं बस तुम्हारी खातिर
ईद का ही सही माहताब बन जाया करो

गर शक हो तुमको मेरे इश्क के जज्बों पे
मांग के जान तुम मुझको आजमाया करो

सबा आयेगी तो बहार लाएगी जरुर "राज"
रौशनी बिखरेगी घर के ये पर्दे उठाया करो

बुधवार, जुलाई 08, 2009

रात भर मेरी ग़ज़ल कोई गुनगुनाया करता है




रात भर मेरी ग़ज़ल कोई गुनगुनाया करता है
मेरे ख्वाबों में यूँ ही बस, आया जाया करता है

सर झुकाया करता हूँ, तो ख्यालों में आता है
सर उठाया तो आईने सा, मुस्कराया करता है

मैं छोड़ देता हूँ, ये दीवारो-दर बे-तरतीब जब
घर मेरा कौन भला जागकर सजाया करता है

बड़ा दिलदार बेदिल है यारों मातम नहीं करता
मेरे वीराने को भी, अश्कों से महकाया करता है

एक रोज सोचता हूँ, छुप छुप के ये सब देख लूँ
कौन है जो ये चूडियाँ घर में खनकाया करता है

मेरी मायूसियों का बड़ा ख्याल रखता है "राज"
शाम ढलती है तो खुद चराग जलाया करता है

सोमवार, जुलाई 06, 2009

जो दर्द दे उसको भुला देना अच्छा




जो दर्द दे उसको भुला देना अच्छा
ज़ख्म हो जाए तो दवा देना अच्छा

और गर यादें नासूर बन जाएँ कभी
उनको दिल से ही मिटा देना अच्छा

तनहा रहके हासिल कुछ नहीं होता
शानो पे रखके सर बता देना अच्छा

जो थाम ले तेरे आरिज पे ढलके अश्क
हर वादा उस से ही निभा देना अच्छा

ये बहारें तेरे जानिब आने को बेताब हैं
अब तो घर के परदे उठा देना अच्छा

मुस्कराने का तुमको भी तो हक है'राज'
हंसी को अब लबों का पता देना अच्छा