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शनिवार, अगस्त 08, 2009

'प्यारा पागल' खुशगवार हूँ मैं



बहुत बेबस बहुत लाचार हूँ मैं
तेरी दीद का, तलबगार हूँ मैं

तूने लाके जिस मोड़ पे छोडा
लगता के जैसे गुनहगार हूँ मैं

तेरे होने से आबाद हुआ था
आज उजड़ता सा दयार हूँ मैं

मेरी बेबसी कोई क्या समझे
दिल से कितना, बेजार हूँ मैं

उसकी यादें तो यूँ साथ हैं मेरे
पर दर्द की सहमी फुहार हूँ मैं

नहीं आएगी लौट के रुत वो
फिर भी एक इन्तजार हूँ मैं

मेरी वहशत हावी है मुझपे के
'प्यारा पागल' खुशगवार हूँ मैं

जिन्दगी जीने को सजा लगती है



जिन्दगी जीने को सजा लगती है
अब ये सब उसकी रजा लगती है

मैं मांगता हूँ वो भी नहीं मिलती
तंग मुझसे तो ये कजा लगती है

शब् के आगोश में सो जाऊं कैसे
नींद की गहराई बेवफा लगती है

तेरे जूनून के वहशी जाते किधर
जंजीरों की अच्छी सदा लगती है

खतावार हूँ मैं उस हमनफस का
जो कम उसको ये वफ़ा लगती है

यूँ तो मर मर के भी जी लेंगे ही
हमको तेरी ख़ुशी बजा लगती है