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शुक्रवार, नवंबर 12, 2010

वो मेरा होकर भी मुझसे जुदा रहा


वो मेरा होकर भी मुझसे जुदा रहा 
जब भी मिला बस खफा खफा रहा 

क्या मौसम आये क्या बादल बरसे 
कहाँ ख्याल सर्द आहों के सिवा रहा 

वक़्त ने यूँ मिटा तो दी तहरीरें कई 
सीने का मगर, हर ज़ख़्म हरा रहा 

रात भर शमा अश्कों की जला करी 
सहर कब हुई, ना शब् का पता रहा 

खौफ तन्हाई का यूँ मेरे घर आ गया 
जो उसकी यादों से ही गले लगा रहा 

जिंदा तो हम रहे थे, साँसे भी चलीं थीं 
पर कब दिल सुकूं में उसके बिना रहा 

उठ-उठ कर रातों को रोया किये हम 
हश्र यही "राज़" उम्र भर को बपा रहा