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रविवार, जनवरी 17, 2010

तेरी ख़ुशी का देख मैं कैसे ख्याल रखता हूँ


तेरी ख़ुशी का देख मैं कैसे ख्याल रखता हूँ
लबों की हंसी में छिपा के शलाल रखता हूँ

क़यामत तक शायद मुझे सुकूं ना मिलेगा
रुते-हिज्र में जो, उम्मीदे-विसाल रखता हूँ

मेरे रकीबों से उसकी कुर्बतें बढ़ तो गयीं हैं
पर कहाँ मैं इस नसीब पे मलाल रखता हूँ

चैन-ओ-सुकूं बहुत मिल जाता उस दम में
जब के मय को अपना हमख्याल रखता हूँ

मेरे मासूम कातिल पे कोई तोहमत ना लगे
इश्क का हर इल्जाम खुद पे डाल रखता हूँ

मेरी ग़ज़लों में कमियां कब तक निकालोगे
गौर करो, शेरों में कुछ तो कमाल रखता हूँ

मुझे नहीं तो कम से कम तुम्हे प्यार मिले
अपने जेहन में यही तमन्ना पाल रखता हूँ

जमाना हुआ ख़ामोशी के आगोश में रहा हूँ
फिर क्यूँ कहते हो चेहरे पे सवाल रखता हूँ

शुक्रवार, जनवरी 15, 2010

जख्म देता है और फिर दुआ करता है


जख्म देता है और फिर दुआ करता है
कुछ यूँ वो हक-ए-वफ़ा अदा करता है

उसके दर से कोई मायूस नहीं आता
पूरी आरज़ू काफिर की खुदा करता है

मौसम-ए-खिजा हो तो गिला ना करो
वही तो मौसमे बहारां दिया करता है

बुजुर्गों की बातें ना दिल से लगा लेना
उनकी तल्खी में भी प्यार रहा करता है

तूफ़ान के आने की आहट समझ लेना
वक़्त जब भी यूँ खामोश हुआ करता है

गुरुवार, जनवरी 14, 2010

अब शाम से चराग नहीं आंख जलती है






अब शाम से चराग नहीं आंख जलती है 
शब् ना जाने कितनी करवट बदलती है 

उसे पाने की आरजू में कैसी हो गयी है 
लोग कहते हैं वो अब नींद में चलती है 

कभी हद से ज्यादा जब वो याद आये है 
लबों से वस्ल की फ़रियाद निकलती है 

ज़माने की तोहमतों ने संग कर दिया है 
साँसों में बस एक ख़ामोशी ही पलती है 

हासिल-ऐ-किस्मत गर खार हो गए हों 
रुत-ऐ-सहरा फिर भला कहाँ टलती है 

बुधवार, जनवरी 13, 2010

उसके जाने पर भी लौटने का इम्काँ रह जाएगा



के मिट जाएगा हर जख्म पर निशाँ रह जाएगा
उसके जाने पर भी लौटने का इम्काँ रह जाएगा

वो बेवफा नहीं था शायद मजबूर रहा होगा बहुत
टूटते दिल को ये भी कभी कभी गुमाँ रह जाएगा

छीन के जमीं मेरी वो मुझे बेमुकाम तो कर देगा
पर दुआओं में उसके लिए आसमाँ रह जाएगा

अपने अश्क यूँ ही किसी पे जाया ना करना तू
ज़माने भर में बिखरी ये बस दास्ताँ रह जाएगा

गर तुम्हारे जैसे जिन्दगी जीना सीख गए हम
हमारे बाद ना किसी का नामो निशाँ रह जाएगा

जाते जाते तुम अपनी यादें वहां छोड़ देना जरा
नहीं तो उम्र भर तड़पता मेरा मकाँ रह जाएगा

मंगलवार, जनवरी 12, 2010

याद आ गया वो फिर शाम के ढलने से



याद आ गया वो फिर शाम के ढलने से
रौशनी हो गयी मेरी आँखों के जलने से

उसकी यादों के साये दिल में रह गए यूँ
हासिल ना कुछ हुआ घर के बदलने से

कुछ ऐसा तो नहीं मांग बैठा था मैं उससे
क्या होता दो कदम और साथ चलने से

ये हादसे भी कैसे यहाँ मेरे साथ होते रहे
अँधेरे ना कम हुए सहर के निकलने से

परिंदा रिहाई मांगता तो रहा सय्याद से
पर क़ज़ा कहाँ रही, सर उसके टलने से

रविवार, जनवरी 10, 2010

अपना दर्द अब हम हर्फों में उतार बैठे हैं


अपना दर्द अब हम हर्फों में उतार बैठे हैं
लो फिरसे लिए एक ग़ज़ल तैयार बैठे हैं

लेके जज्बातों को अपने डूब जाने दो हमें
मिले हर खुशी उन्हें जो दरिया पार बैठे हैं

कल तक मंजिल नजर आती थी सामने
आज तो कमबख्त हम राहें भी हार बैठे हैं

ये जख्म-ओ-रुसवाई ये गम-ओ-तन्हाई
मेरे हमसाये बस तो अब यही चार बैठे हैं

रकीबों के हिस्से में गुल आ गए तो क्या
लिखवा के हम नसीबों में जो खार बैठे हैं

मेरे मर्ज का इलाज नहीं रहा बाकी कोई
सजा कर अजीज अब मेरी मजार बैठे हैं

गुरुवार, जनवरी 07, 2010

आते--आते.....


फिर से वो रह गए हैं कहाँ आते आते
रकीब ने रोक लिया, यहाँ आते आते

दम निकलेगा जब मेरा समझेंगे तब
होती हैं कैसी ये हिचकियाँ आते आते

फस्ले गुल गुमाँ ना कर खुद पे बहुत
देर नहीं लगती वीरानियाँ आते आते

दिल की बात दिल ही में रह गयी मेरे
ना बचा था वक़्त दरमियाँ आते आते

खबर उनको भी मेरे घर की जा लगी
रूकती कहाँ फिर आँधियाँ आते आते

सोमवार, जनवरी 04, 2010

जब महताब खिलेगा तो सितारे आयेंगे



जब महताब खिलेगा तो सितारे आयेंगे
चांदनी रात के खूबसूरत नज़ारे आयेंगे

तेरी यादों के साए में खामोश रहूंगी मैं
दिल में मगर कुछ रंगीन इशारे आयेंगे

एक चेहरा वही देखने को तरस जाउंगी
नींद में यूँ तो ख्वाब बहुत सारे आयेंगे

शब् जवाँ होगी तो बात और भी बढ़ेगी
मोहब्बत के जब कई यहाँ मारे आयेंगे

जिस दम तुम आने का वादा कर दोगे
हम इंतजार की घड़ियाँ गुजारे आयेंगे

शुक्रवार, जनवरी 01, 2010

तेरा इश्क है पागलपन है, या ये मेरी आदत है


जाने कैसा दीवाना हूँ मैं, जाने कैसी वहशत है
तेरा इश्क है पागलपन है, या ये मेरी आदत है

गुल में तेरा चेहरा देखूं, झील ये आँखें लगती हैं
हर शै में बस तू ही तू, खुदा की कैसी कुदरत है

किस्से लैला मंजनू के मुझको क्यूँ समझाते हो
मेरा इश्क जुदा उनसे जिस से मेरी मुहब्बत है

उसकी खातिर कुछ भी तो अब मैं कर जाऊँगा
शमा के परवाने सी अब हो गयी मेरी हालत है

रात रात भर आँखों में नींद ना आया करती है
उनके ही ये जलवे हैं, ये सब उसकी इनायत है

तनहा-2 बातें करना मुझको अच्छा लगता है
खुद ही खुद के दिल से जाने कैसी गफलत है

रोते रोते हँसता हूँ और हँसते हँसते रो देता हूँ
कोई कहता वहशी हूँ तो कोई कहता शिद्दत है

जाने कैसा दीवाना हूँ मैं, जाने कैसी वहशत है
तेरा इश्क है पागलपन है, या ये मेरी आदत है