कभी अपने डर से निकला करो
बे-सबब ही घर से निकला करो
हम तो हाथ थाम लेंगे तुम्हारा
इस भरोसे पर से निकला करो
सिवा दर्द के ये कुछ नहीं देता
यादों के सफ़र से निकला करो
गैरों से रख लो तर्के-ताल्लुक
मेरे भी इधर से निकला करो
रात में तुम जुगुनू बनकर अब
अंधेरों के शहर से निकला करो
इश्क की राहें इतनी आसान नहीं
मियां थोडा सबर से निकला करो
"राज़" कभी ख्याल भी समझो
ग़ज़ल-ओ-बहर से निकला करो