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मंगलवार, दिसंबर 29, 2009

यूँ बेसबब भी मुस्कराते रहना


यूँ बेसबब भी मुस्कराते रहना
अश्क पलकों में छुपाते रहना

रकीबत चीज बहुत ही बुरी है
के सबसे यारी निभाते रहना

पैरों की आहट वो भूल ना जाए
घर भी कभी आते जाते रहना

रिश्तों में तल्खियाँ अच्छी नहीं
सर ये अपना भी झुकाते रहना

कौन अपना कौन पराया है यहाँ
दुआ सलाम सबसे उठाते रहना

सोमवार, दिसंबर 28, 2009

जिंदगी अब मेरी गुनाह हो गयी


ग़मों की दौलत बेपनाह हो गयी
जिंदगी अब मेरी गुनाह हो गयी

भटका बहुत मंजिल के लिए मैं
पर हर राह यहाँ गुमराह हो गयी

वही दिनों-रात, वही-शामो सहर
बस कम उसकी निगाह हो गयी

वो खफा हुआ, दुनिया लुट गयी
बेमुकाम फिर मेरी आह हो गयी

शब् की सूरत सा हमदम मिला
तारीकियों की अब चाह हो गयी

मर मर के जिए, जी जी के मरे
कुछ यूँ ही उम्र निबाह हो गयी

रविवार, दिसंबर 27, 2009

मैं जिसके लिए उम्र भर दीवाना रहा


मैं जिसके लिए उम्र भर दीवाना रहा
एक वो ही मेरे प्यार से अंजाना रहा

फजाओं में भी खिजा का आलम रहा
बस मेरा ही घर उसका निशाना रहा

हमी से हर अदावत निभा रखी उसने
रकीबों के घर यूँ तो आना जाना रहा

हमने ना सीखी जफा पे जफा करना
वफाओं का चलन हमने पुराना रहा

जख्म खाए दिलों पे औ खामोश रहे
कुछ यूँ भी उल्फत का निभाना रहा

एक मुद्दत से उसकी कुर्बत को तरसे
उमर भर हिजर का ही ज़माना रहा

छोड़ आये थे जिसके लिए घर अपना
वो कूचा औ शहर हमसे बेगाना रहा

बुधवार, दिसंबर 23, 2009

मयकशी मेरी आदत मुझे बदहवाश रहने दे


अपनी खुशबू का साँसों में अहसास रहने दे
जो कुछ है बस यही तो है मेरा खास रहने दे

मिल के बिछड़ना फिर बिछड़ के मिलना यूँ
उम्र भर के लिए आँखों में ये तलाश रहने दे

ना मांग लेना अपनी आहों के लम्हे उधार में
एक यही तो बची है दौलत मेरे पास रहने दे

माना के आब सा जुनूँ रखते हो जज्बात में
पर मैं तो हूँ सहरा मुझमे मेरी प्यास रहने दे

नहीं होना शामिल मुझे वाइजों की जात में
मयकशी मेरी आदत मुझे बदहवाश रहने दे

सोमवार, दिसंबर 21, 2009

मेरे जख्मो पे नमक लगाने तो आएगी


मेरे जख्मो पे नमक लगाने तो आएगी
चलो वो मिलने किसी बहाने तो आएगी

मयकशी से इश्क का ये नशा कम करेंगे
ऐसे ही अपनी अक्ल ठिकाने तो आएगी

शब् भर उसकी याद में ना जागा करेंगे
बादे-सबा चलेगी सहर उठाने तो आएगी

काम सय्याद का किये जायेंगे अब हम
कोई बुलबुल यूँ कभी निशाने तो आएगी

ना रहतीं बहारें रूठी ज्यादा दिनों तलक
रुत जरुर कोई समर उगाने तो आएगी

सोचता हूँ "राज" उसके लिए भी रो लूँ
पशेमाँ होके एक रोज मनाने तो आएगी

सोमवार, दिसंबर 07, 2009

किसे भूल जाऊं और किसे याद रखूं


किसे भूल जाऊं और किसे याद रखूं
सोचता हूँ खुद को ही बस बर्बाद रखूं

और जो मंज़र मुझे रुलाया करते हों
उम्र भर उनको जेहन में आबाद रखूं

वो मुझे दुआ में बद्दुआ देती रहा करे
पूरी हो उसकी दुआ मैं फ़रियाद रखूं

अपने महबूब का सजदा किया करूँ
खुदा को भी अब तो उसके बाद रखूं

नहीं होना मुझे शायर तुम जैसा यारों
बहर से अपनी ये ग़ज़ल आजाद रखूं

मंगलवार, दिसंबर 01, 2009

जिन्दगी अब मुझको खराब सी लगती है


मयकश के जामों की शराब सी लगती है
जिन्दगी अब मुझको खराब सी लगती है

जिसको भी देखो लूटने को बेचैन हुआ है
तवायफ के हुश्न-ओ-शबाब सी लगती है

रोज इबादत यूँ तो उस खुदा की करता हूँ
फिर भी मुझे बंदगी अजाब सी लगती है

मुहब्बत की ये पहेली कुछ अजब रही है
सवाल पे सवाल, बेहिसाब सी लगती है

कुसूर उन निगाहों का है या खता मेरी है
के शाम ढलके भी आफताब सी लगती है

इश्क में तबाही के मंजर क्या हुए "राज"
मेरी सूरत बस उनके जवाब सी लगती है