मैं जिसके लिए उम्र भर दीवाना रहा
एक वो ही मेरे प्यार से अंजाना रहा
फजाओं में भी खिजा का आलम रहा
बस मेरा ही घर उसका निशाना रहा
हमी से हर अदावत निभा रखी उसने
रकीबों के घर यूँ तो आना जाना रहा
हमने ना सीखी जफा पे जफा करना
वफाओं का चलन हमने पुराना रहा
जख्म खाए दिलों पे औ खामोश रहे
कुछ यूँ भी उल्फत का निभाना रहा
एक मुद्दत से उसकी कुर्बत को तरसे
उमर भर हिजर का ही ज़माना रहा
छोड़ आये थे जिसके लिए घर अपना
वो कूचा औ शहर हमसे बेगाना रहा
shukriya suman ji....hausla milta hai jab aap sabhi apni partikriya dete hain.....abhaar
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