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रविवार, दिसंबर 27, 2009

मैं जिसके लिए उम्र भर दीवाना रहा


मैं जिसके लिए उम्र भर दीवाना रहा
एक वो ही मेरे प्यार से अंजाना रहा

फजाओं में भी खिजा का आलम रहा
बस मेरा ही घर उसका निशाना रहा

हमी से हर अदावत निभा रखी उसने
रकीबों के घर यूँ तो आना जाना रहा

हमने ना सीखी जफा पे जफा करना
वफाओं का चलन हमने पुराना रहा

जख्म खाए दिलों पे औ खामोश रहे
कुछ यूँ भी उल्फत का निभाना रहा

एक मुद्दत से उसकी कुर्बत को तरसे
उमर भर हिजर का ही ज़माना रहा

छोड़ आये थे जिसके लिए घर अपना
वो कूचा औ शहर हमसे बेगाना रहा

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