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सोमवार, दिसंबर 28, 2009

जिंदगी अब मेरी गुनाह हो गयी


ग़मों की दौलत बेपनाह हो गयी
जिंदगी अब मेरी गुनाह हो गयी

भटका बहुत मंजिल के लिए मैं
पर हर राह यहाँ गुमराह हो गयी

वही दिनों-रात, वही-शामो सहर
बस कम उसकी निगाह हो गयी

वो खफा हुआ, दुनिया लुट गयी
बेमुकाम फिर मेरी आह हो गयी

शब् की सूरत सा हमदम मिला
तारीकियों की अब चाह हो गयी

मर मर के जिए, जी जी के मरे
कुछ यूँ ही उम्र निबाह हो गयी

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