सूनी, गुमसुम, खामोश बस्तियाँ रह जायेंगी
खिज़ा आयी तो बस सूखी पत्तियाँ रह जायेंगी
अबके हिज्र का दिसंबर शायद मैं भुला भी दूं
पर दिल में बाकी पिछली सर्दियाँ रह जायेंगी
मुझको मालूम है ये के, तुम न आओगे मगर
याद करती तुमको मेरी हिचकियाँ रह जायेंगी
पलट के जब कभी मैं माजी की तरफ देखूंगा
आँखों में लहू, होठों पे सिसकियाँ रह जायेंगी
है दुआ के खुदा तुमको सुकूँ की जिंदगी बख्शे
हमारे हक में पुरानी सब चिट्ठियाँ रह जायेंगी