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शुक्रवार, नवंबर 30, 2012

कलम चली है कहीं कोहराम ना कर दे




लफ़्ज़ों की दहशत अजब काम ना कर दे 
ये कलम चली है कहीं कोहराम ना कर दे

बात कडवी मगर सच ही तो रहती हमेशा 
चुप बैठा हूँ, कहीं क़त्ल-ए आम ना कर दे
 
सन्नाटे में गुजर इक हद तक ही है वाजिब 
हद जरा भी बढ़े तो जीना हराम ना कर दे

लत शराब औ' शबाब की अच्छी नहीं होती 
कहीं ये घर बार तक तेरा नीलाम ना कर दे 

जो सियासी लोग हैं उनसे जरा बच के रहिये 
इनसे दोस्ती कहीं आपको बदनाम ना कर दे 

गुरुवार, नवंबर 29, 2012

तिरी याद का दिसंबर.....




वही तन्हाई, वही ख़ामोशी, वही बियाबान मंजर 
लौट के आ गया है फिर से तिरी याद का दिसंबर 
जल उठे हैं वही पुराने कुछ अरमान दिल के अंदर 
लौट के आ गया है फिर से तिरी याद का दिसंबर

कुछ सुलगती हुयी साँसे तो कुछ तरसती निगाहें 
और पतझड़ की रुत में जैसे सब वीरान हुयी राहें 
आहों के जलते शोले और उसपे आँखों का समंदर 
लौट के आ गया है फिर से तिरी याद का दिसंबर

मौसमों की बर्फ़बारी और रातों की लंबी बेक़रारी 
एक एक लम्हा भी सदियों पे हो रहा हो जैसे भारी 
शायद ये पूछने के रहता हूँ कैसे तुझसे बिछड़कर 
लौट के आ गया है फिर से तिरी याद का दिसंबर

कानों को मेरे छूकर के जब भी ये गुजरेंगी हवाएं 
नाम तेरा मुझको ही हर दफे बस जायेंगी बताएं 
हिचकियों में ही होगी अब तो यहाँ अपनी गुजर 
लौट के आ गया है फिर से तिरी याद का दिसंबर

सोमवार, नवंबर 12, 2012

समझो मेरे हालात ये अशआर देखकर



यूँ ही ना जानो इन्हें तुम बेकार देखकर 
समझो मेरे हालात ये अशआर देखकर 

उसके चेहरे पे रुकी हैं कब से मेरी नज़रें   
जलता हूँ अपनी ताकते दीदार देखकर 

मुहब्बत के फिर पढने लगता हूँ कशीदे 
आऊं अल्हड़ सा जब मैं किरदार देखकर  

देखो तो ये बावरा सा इधर उधर फिरे है 
चाँद भी आया है उसका रुखसार देखकर 

फिर वो ही बासी-पुरानी ख़बरें मिलेंगी 
क्या करना है छोड़िये अख़बार देखकर.

अपने वोट की कीमत पहचान बसर तू 
अबके संसद में भेजना सरकार देखकर

कैसे तुम्हे ''राज़'' अपनी ग़ज़ल सुना दें 
तुम दाद भी देते हो तो फनकार देखकर 

शुक्रवार, नवंबर 09, 2012

ज़ख्मों का ये दरख़्त तब हरा होगा...



ज़ख्मों का ये दरख़्त तब हरा होगा 
इन आँखों में जब सावन भरा होगा 

झूठ है के हिमालय से वो गंगा लाये 
ये ऐसा काम हम जैसे ने करा होगा 

मेक'अप नहीं चेहरे की शिकन देखो 
कैसे दिल पे उसने पत्थर धरा होगा 

गाँव की हवाओं में फिर से मातम है 
किसी घर में कोई किसान मरा होगा 

शक की उसपे ना बुनियाद हो "राज़" 
दिल से जो होगा वो रिश्ता खरा होगा