ज़ख्मों का ये दरख़्त तब हरा होगा
इन आँखों में जब सावन भरा होगा
झूठ है के हिमालय से वो गंगा लाये
ये ऐसा काम हम जैसे ने करा होगा
मेक'अप नहीं चेहरे की शिकन देखो
कैसे दिल पे उसने पत्थर धरा होगा
गाँव की हवाओं में फिर से मातम है
किसी घर में कोई किसान मरा होगा
शक की उसपे ना बुनियाद हो "राज़"
दिल से जो होगा वो रिश्ता खरा होगा
सुंदर रचना !
जवाब देंहटाएंपहले वाले शेर को दोनों अर्थों में पढ़ा जा सकता है..
एक तो... ज़ख़्मी दरख़्त तब ही हरे होंगे...जब सावन बरसेगा..
और दूसरा... ज़ख़्म तब ही हरे रहते हैं...जब आँखों में सावन होता है...~बहुत अच्छे !
और तीसरा शेर पढ़कर...एक गीत की याद आ गयी..~हो के मजबूर... मुझे उसने भुलाया होगा...
~सादर !
जो मैंने कहना चाहा है वही आपने समझा......
जवाब देंहटाएंआभार.....