जब होंगे लोगों के दिल में वलवले मचलने को
आ जायेंगे वो भी इन्कलाब के रस्ते चलने को
ऐ सियासतदानों जरा तुम मुड़ कर के तो देखो
ज़माना किस क़दर बेताब है करवट बदलने को
बरसों बरस से तुमने तो यहाँ बहुत धूप है सेंकी
बढ़ रहा है अब मगर दिल्ली का सूरज ढलने को
लेकर आयेंगे कुछ चराग हम इस नयी सदी से
जो तैयार होंगे तूफ़ान के साए में भी जलने को
आ गया है कुछ नया सुरूर अबके तो हवाओं में
तभी तो हर शख्स बेताब है घर से निकलने को
किसी पत्ते ने भी उससे तो रफाकात ना निभायी
शज़र छोड़ आये वो तन्हा पतझर में उबलने को
यादों की बर्फ पे "राज़" करी है लफ़्ज़ों की गर्मी
दो चार ग़ज़लें तो है बस अब यूँ ही पिघलने को
बढ़िया !
जवाब देंहटाएंsunder ghazal
जवाब देंहटाएंbadhai aapko
sundar abhivyakti..
जवाब देंहटाएंवाह...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया गज़ल....
अनु
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबिलकुल ठीक!-
जवाब देंहटाएं'बुलबुले', 'समन्दर' में,'इनकलाब'लातें हैं |
छोटे छोटे 'प्रयास',युग' में बदलाव' लाते हैं ||