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सोमवार, जनवरी 23, 2012

सच बता के जा




भले तू यूँ मेरा दिल दुखा के जा
पर जाना है तो सच बता के जा 

यकीं करना है तो कर मुझ पे 
गर शक है तो वो मिटा के जा 

तेरे दिल में भी खलिश ना रहे
शिकवे-गिले सब जता के जा 

मेरी यादें तुझे ना तड़पायें कहीं 
वो पुराने ख़त सारे जला के जा  

तेरे बगैर हम यहाँ जियेंगे कैसे 
जाते-२ कोई हुनर सिखा के जा  

मुझे तो ये तीरगी पसंद है बहुत
चाँद को फिर कहीं छिपा के जा 

हर आँख अश्कबार कर दे "राज़" 
बज़्म में ऐसी ग़ज़ल सुना के जा 

रविवार, जनवरी 22, 2012

दर्द जो हद से गुजरा तो आजार बन गया




दर्द जो हद से गुजरा तो आजार बन गया 
और लफ्जों में उतरा तो अशार बन गया 

हमने कही बात तो लोगों को चुभ गयी 
ग़ालिब ने कही वो तो फनकार बन गया 

मैं कह-कह के थक गया के ख्याल मेरे हैं 
नाम उसका फ़साने में किरदार बन गया 

जी हुजूरी की उन्होंने और आगे बढ़ चले 
उसे मुफलिसी मिली जो खुद्दार बन गया 

उसे सच नापसंद था मैं झूठ बोलता रहा 
लो उसके लिए और मैं वफादार बन गया 

आज की लैला से वफ़ा की उम्मीद नहीं है 
कैस भी हवस का ही, तलबगार बन गया 

इस ग़ज़ल में भी ''राज़'' है कुछ नया नहीं 
चलो इक फसाना और यूँ बेकार बन गया

रविवार, जनवरी 15, 2012

ये जिंदगानी खूब है....




क्या कहूँ तुमसे के मैं ये जिंदगानी खूब है 
लब तो मेरे हंस रहे आँखों में पानी खूब है 

ना मिला रहबर कोई ना ही मिला रहनुमा 
तन्हा तन्हा लिख रहा हूँ ये कहानी खूब है 

क्या करूँ आँखों में हैं जबसे आकर वो बसे 
आईना तक कहता है के तू दीवानी खूब है 

उनका ज़माल देखूं के उनसे मैं बातें करूँ 
सामने पाकर उन्हें हो रही हैरानी खूब है 

कुछ शामें इंतज़ार की कुछ ख्वाब की रातें 
इश्क में जो है मिली इक-2 निशानी खूब है