दर्द जो हद से गुजरा तो आजार बन गया
और लफ्जों में उतरा तो अशार बन गया
हमने कही बात तो लोगों को चुभ गयी
ग़ालिब ने कही वो तो फनकार बन गया
मैं कह-कह के थक गया के ख्याल मेरे हैं
नाम उसका फ़साने में किरदार बन गया
जी हुजूरी की उन्होंने और आगे बढ़ चले
उसे मुफलिसी मिली जो खुद्दार बन गया
उसे सच नापसंद था मैं झूठ बोलता रहा
लो उसके लिए और मैं वफादार बन गया
आज की लैला से वफ़ा की उम्मीद नहीं है
कैस भी हवस का ही, तलबगार बन गया
इस ग़ज़ल में भी ''राज़'' है कुछ नया नहीं
चलो इक फसाना और यूँ बेकार बन गया
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