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बुधवार, अप्रैल 29, 2009

डर लगता है...




तुझको अपना बना लूं डर लगता है
एक और चोट खा लूं डर लगता है

तू भी कहीं न संगदिल निकल जाए
तुझसे कैसे दिल लगा लूं डर लगता है

मेरे जख्मो को कोई देखने नहीं आता
कैसे हौसला आजमा लूं डर लगता है

तन्हाईयाँ भी अब साथ नहीं देती मेरा
इनसे क्या वादा निभा लूं डर लगता है

है पशेमां वो पर बेवफा तो है न "राज"
ऐतबार कितना उठा लूं डर लगता है.