लोकप्रिय पोस्ट

मंगलवार, अगस्त 25, 2009

शब् ने यूँ पलकें बिछा रखीं थी कल



शब् ने यूँ पलकें बिछा रखीं थी कल
शाम से ही हो रही इक जैसे ग़ज़ल

चाँद चुपके से नदी में आ गया था
महक उठा रौशनी से हर एक पल

मुझको भला क्यूँ सहरा कहता है
गर तू समंदर है तो मेरे साथ चल

मेरे हबीब मुझको कम समझते हैं
जानना हो तो, मेरा रकीब निकल

सब्र आता नहीं मुहब्बत में जिन्हें
भटकते हैं वो उम्र भर होके पागल

रविवार, अगस्त 23, 2009

कभी ख्वाबों की बात करता है



कभी ख्वाबों की बात करता है
कभी किताबों की बात करता है

सवाल होके भी वो मुझसे क्यूँ
अपने जवाबों की बात करता है

मौसमे सेहरा होता है फिर भी
खिलते गुलाबों की बात करता है

परिंदों के हक में फैसला कौन दे
सय्याद अताबों की बात करता है

अब्र के साए जब चाँद मिलता है
उसके हिजाबों की बात करता है

वाइज भी मयकदे में मिला था
तो क्यूँ सवाबों की बात करता है

जो मुल्क के गद्दारों में शामिल है
मुझसे इन्कलाबों की बात करता है

बुधवार, अगस्त 19, 2009

कांच सा उसका नाजुक नाजुक दिल लगता है



कांच सा उसका नाजुक नाजुक दिल लगता है
अब वो तो मुझको अपनों में शामिल लगता है

ज़ख्म भी देता है, और फिर दुआ भी करता है
जाने कैसा है वो, एक प्यारा कातिल लगता है

अक्सर मेरे ख्वाबों में यूँ आया जाया करता है
मेरी उम्मीदों का बस इतना हासिल लगता है

मैं खुद को बेखौफ सा बहता दरिया कहता हूँ
मेरी राहों को थामे, वो ऐसा साहिल लगता है

दिल अपने सब "राज" उसको सुनाया करता है
इस दुनिया में एक वो ही तो काबिल लगता है

रविवार, अगस्त 16, 2009

उसे बेसबब मेरी याद आई होगी


उसे बेसबब मेरी याद आई होगी
शाम ने जब सुर्खी बिखराई होगी

एक मैं ही नहीं शब् भर जागा था
उन आँखों ने भी नींद भुलाई होगी

हाथ आया होगा पुराना ख़त जब
पढ़के हर्फों को वो मुस्कराई होगी

हवा के झोंके की इक आहट पे भी
नजरें राहों तक उसने उठाई होगी

जिक्र जब भी चाँद का हुआ होगा
हौले हौले से वो भी शरमाई होगी

थम गयी होंगी उसकी बेचैन साँसें
मेरे आने की खबर जब पाई होगी

पलकें नम दिल बेकरार हुआ होगा
मेरी ग़ज़ल उसने जब सुनाई होगी

इक आइना ही था उसका महरम
हर बात उसको ही तो बताई होगी

बुधवार, अगस्त 12, 2009

हमको वो माहे-ईद का दीदार नजर आता है



हमको वो माहे-ईद का दीदार नजर आता है
चिलमन से जब तेरा रुखसार नजर आता है

इस झलक जो तेरी गर कोई देख ले कहीं से
उमर भर वो शख्स मयख्वार नजर आता है

निगाहे-नाज जो अपनी सेहरा पे डाल दो यूँ
वो सेहरा नहीं रहता गुलजार नजर आता है

लब पे जो चली आती है तबस्सुम हलकी-२
तो चमन का हर गुल शर्मशार नजर आता है

आती हो तुम जिसके ख्वाबों में रात रात को
ज़माने को दीवाना शबे बेदार नजर आता है

सजदा जिस रोज से वो करने लगे तुम्हारा
खुदा उस बंदे को फिर बेकार नजर आता है

तेरे हुस्न की तारीफ में अब और क्या कहें
के तेरे आगे हूर भी निगुंसार नजर आता है

खिजां की आँख भी नहीं उठती मेरी जानिब
जबसे "राज" तू रु-ऐ-नौबहार नजर आता है

शनिवार, अगस्त 08, 2009

'प्यारा पागल' खुशगवार हूँ मैं



बहुत बेबस बहुत लाचार हूँ मैं
तेरी दीद का, तलबगार हूँ मैं

तूने लाके जिस मोड़ पे छोडा
लगता के जैसे गुनहगार हूँ मैं

तेरे होने से आबाद हुआ था
आज उजड़ता सा दयार हूँ मैं

मेरी बेबसी कोई क्या समझे
दिल से कितना, बेजार हूँ मैं

उसकी यादें तो यूँ साथ हैं मेरे
पर दर्द की सहमी फुहार हूँ मैं

नहीं आएगी लौट के रुत वो
फिर भी एक इन्तजार हूँ मैं

मेरी वहशत हावी है मुझपे के
'प्यारा पागल' खुशगवार हूँ मैं

जिन्दगी जीने को सजा लगती है



जिन्दगी जीने को सजा लगती है
अब ये सब उसकी रजा लगती है

मैं मांगता हूँ वो भी नहीं मिलती
तंग मुझसे तो ये कजा लगती है

शब् के आगोश में सो जाऊं कैसे
नींद की गहराई बेवफा लगती है

तेरे जूनून के वहशी जाते किधर
जंजीरों की अच्छी सदा लगती है

खतावार हूँ मैं उस हमनफस का
जो कम उसको ये वफ़ा लगती है

यूँ तो मर मर के भी जी लेंगे ही
हमको तेरी ख़ुशी बजा लगती है

रविवार, अगस्त 02, 2009

वो...........



किसी शायर के ख्वाब जैसी है
वो एक खिलते गुलाब जैसी है

क्यूँ लोग संग कहते हैं उसको
वो तो दरिया के आब जैसी है

बड़ा आसान है तार्रुफ़ उसका
वो एक खुली किताब जैसी है

उसके दीदार से नशा छाता है
वो मयकदे की शराब जैसी है

सितारे देख के उसे शर्माते है
वो खुद एक माहताब जैसी है

कोई सवाल कैसे करे उस से
वो सुलझे हुए जवाब जैसी है

वो गुल है खुशबू है केसर की
वो वादियों में चनाब जैसी है

मौसमों में उसकी गुफ्तगू है
वो बहारों के आदाब जैसी है

हया के आईने भी रखती है
वो सरे बज्म नकाब जैसी है