
कभी ख्वाबों की बात करता है
कभी किताबों की बात करता है
सवाल होके भी वो मुझसे क्यूँ
अपने जवाबों की बात करता है
मौसमे सेहरा होता है फिर भी
खिलते गुलाबों की बात करता है
परिंदों के हक में फैसला कौन दे
सय्याद अताबों की बात करता है
अब्र के साए जब चाँद मिलता है
उसके हिजाबों की बात करता है
वाइज भी मयकदे में मिला था
तो क्यूँ सवाबों की बात करता है
जो मुल्क के गद्दारों में शामिल है
मुझसे इन्कलाबों की बात करता है
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