
शब् ने यूँ पलकें बिछा रखीं थी कल
शाम से ही हो रही इक जैसे ग़ज़ल
चाँद चुपके से नदी में आ गया था
महक उठा रौशनी से हर एक पल
मुझको भला क्यूँ सहरा कहता है
गर तू समंदर है तो मेरे साथ चल
मेरे हबीब मुझको कम समझते हैं
जानना हो तो, मेरा रकीब निकल
सब्र आता नहीं मुहब्बत में जिन्हें
भटकते हैं वो उम्र भर होके पागल
bhut achchhi lagi aap ki ye rachana ...man ko chhu gai
जवाब देंहटाएंaap word verification hata de to comment karne main asani hoti hai
gargi ji..shukriya,,,,
जवाब देंहटाएंaapne apna keemti waqt diya...
शब्र ने यूँ पलके बिछा रखीं थी कल
जवाब देंहटाएंगजल बहुत अच्छी लगी .
bharti ji.....aabhari hujo aapne waqt diya
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