लोकप्रिय पोस्ट

सोमवार, जुलाई 27, 2009

जिधर देखते हैं बस तुझे ही उधर देखतें हैं



तेरे इश्क के बिस्मिल अब किधर देखते हैं
जिधर देखते हैं बस तुझे ही उधर देखतें हैं

ऐब तेरे हुस्न में अब एक नहीं मिलता हमे
जब भी देखतें हैं हम तो बस हुनर देखतें हैं

छलकता है जब अर्क जबीं से आरिज पे तेरे
हम उस दम आलम-ऐ-रुख पे गुहर देखतें हैं

अब तो मयखानों में दिल लगा नहीं करता
तेरे मयकश लबों से अपनी गुजर देखतें हैं

उनके पास भी इलाज नहीं दिल-ऐ-बीमार का
चारागर जब भी मेरा ये एक जिगर देखते हैं

अपने घर की छत पे आते तो हैं माहे ईद देखने
चाँद रहता है उधर मगर हम तेरे इधर देखतें हैं

वो दिन हमे ईद का दिन लगता है यूँ ही कभी
जिस रोज तुमसे मिलती अपनी नजर देखतें हैं

इंतजार की हद, क्या कहे "राज" अब तुमसे
के शाम से ही उठ उठ के बस सहर देखतें हैं