ज़ख्मों का ये दरख़्त तब हरा होगा
इन आँखों में जब सावन भरा होगा
झूठ है के हिमालय से वो गंगा लाये
ये ऐसा काम हम जैसे ने करा होगा
मेक'अप नहीं चेहरे की शिकन देखो
कैसे दिल पे उसने पत्थर धरा होगा
गाँव की हवाओं में फिर से मातम है
किसी घर में कोई किसान मरा होगा
शक की उसपे ना बुनियाद हो "राज़"
दिल से जो होगा वो रिश्ता खरा होगा