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गुरुवार, मार्च 17, 2011

उसकी खुशबू का फिर से पता देती है


उसकी खुशबू का फिर से पता देती है 

ये सबा चलती है मुझको रुला देती है 

वो भी तड़पती है हिज्र में कहीं बहुत 
मेरे बाद जाने किस को सदा देती है 

वो आते हैं जो शाम तो सुकूँ पाती है 
शाख इक-इक परिंदे को दुआ देती है 

जबके गम में जीना सीख लेता हूँ मैं 
क्यूँ याद दर्द के शोले को हवा देती है 

रोया है वो रात भर तन्हाई में कहीं 
'राज़' ये शबनम सबको बता देती है