उसकी खुशबू का फिर से पता देती है
ये सबा चलती है मुझको रुला देती है
वो भी तड़पती है हिज्र में कहीं बहुत
मेरे बाद जाने किस को सदा देती है
वो आते हैं जो शाम तो सुकूँ पाती है
शाख इक-इक परिंदे को दुआ देती है
जबके गम में जीना सीख लेता हूँ मैं
क्यूँ याद दर्द के शोले को हवा देती है
रोया है वो रात भर तन्हाई में कहीं
'राज़' ये शबनम सबको बता देती है