उसकी खुशबू का फिर से पता देती है
ये सबा चलती है मुझको रुला देती है
वो भी तड़पती है हिज्र में कहीं बहुत
मेरे बाद जाने किस को सदा देती है
वो आते हैं जो शाम तो सुकूँ पाती है
शाख इक-इक परिंदे को दुआ देती है
जबके गम में जीना सीख लेता हूँ मैं
क्यूँ याद दर्द के शोले को हवा देती है
रोया है वो रात भर तन्हाई में कहीं
'राज़' ये शबनम सबको बता देती है
वो आते हैं जो शाम तो सुकूँ पाती है
जवाब देंहटाएंशाख इक-इक परिंदे को दुआ देती है
खूबसूरत गज़ल
उम्दा ग़ज़ल .........हर शेर बेहतरीन
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर गज़ल..हरेक शेर मर्मस्पर्शी..
जवाब देंहटाएंइन खूबसूरत शेरों पर एक मेरा भी ...
जवाब देंहटाएंसुबह की खिलती -मुस्कुराती धूप में
शबनम के चाँद कतरे
गोया चांदनी ने रात भर आंसू बहाए हो ..!
बहुत बेहतरीन...
जवाब देंहटाएंसंगीता जी.... शुक्रिया
जवाब देंहटाएंसुरेन्द्र भाई.... शुक्रिया
कैलाश साब....शुक्रिया
वाणी जी...... शुक्रिया और खुबसूरत शेर के लिए आभार
समीर भाई.... बड़े दिन बाद आपकी आमद हुई... आभार