कहाँ अब ये सच्ची इबादत में मिला करते हैं
बंदे बस बंदगी की रवायत में मिला करते हैं
छल फरेब झूठ से है यहाँ पर जिनका वास्ता
ऐसे लोग ही बस सियासत में मिला करते हैं
जिन्हें रखा है कौम की हिफाज़त की खातिर
वही दंगाइयों की हिमायत में मिला करते हैं
दोस्त कहके पीठ पे वार करना शगल उनका
कुछ लोग ऐसी भी शराफत में मिला करते हैं
जर्द हो मौसम तो खुद ही रास्ता तलाश करिए
महरो-माह कहाँ ऐसी आफत में मिला करते हैं
दोस्त कहके पीठ पे वार करना शगल उनका
जवाब देंहटाएंकुछ लोग ऐसी भी शराफत में मिला करते हैं
बहुत खूब ...अच्छी गज़ल
Behtreen Gazal....
जवाब देंहटाएं'दोस्त कहके पीठ पे वार करना शगल उनका
जवाब देंहटाएंकुछ लोग ऐसी भी शराफत में मिला करते हैं '
उम्दा शेर ....बढ़िया ग़ज़ल
्बेहद उम्दा गज़ल …………करारा वार करती हुयी…………शानदार्।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर गज़ल...उम्दा...
जवाब देंहटाएंbahut umda gazal.
जवाब देंहटाएंआप सभी की आमद हौसला-अफजाई के लिए बहुत है....
जवाब देंहटाएंयूँ ही आते रहिये इस नाचीज़ की बज़्म में... आपसे रौनक है यहाँ की....